माद्री

on Sunday 3 July 2016
मद्रदेश के राजा शल्य की बहिन माद्री का विवाह राजा पाण्डु के साथ हुआ। पाण्डु जिसका एक विवाह पहले ही कुन्तीभोज की कन्या कुन्ती से हो चुका था। भीष्म पितामह के आग्रह को राजा शल्य टालने में असमर्थ था अतः उसे आखिर स्वीकार कर अपनी बहिन का विवाह पाण्डु के साथ करना पड़ा। एक दिन आखेट करते समय पाण्डु ने सहवास करते मृग को मार डाला। मृग वास्तव में किन्दम नामक ऋषिकुमार था, उसने मरते समय अपना रूप प्रकट कर पाण्डु को भी यही शाप दिया कि-सहवास करते समय मुझे मारने का तूने नृशंस कृत्य किया है। अतः तेरी भी मृत्यु इसी प्रकार होगी।

शाप-पीड़ित हो पाण्डु ने सन्यास लेने का विचार किया किन्तु कुन्ती और माद्री ने सन्यास न लेकर वानप्रस्थ आश्रम में रहते हुए तपस्या करने का निवेदन किया जिससे उन दोनों को पति का सान्निध्य और सेवा का अवसर प्राप्त हो सके। पाण्डु ने अपनी दोनों पत्नियों की बात स्वीकार करते हुए सम्पूर्ण वस्त्राभरण का परित्याग कर राज्य तथा सम्पति धृतराष्ट को सैौंपकर तपस्वियों का सा जीवन व्यतीत करने लगा। दोनों पत्नियां कुन्ती और माद्री उसके साथ थीं। पाण्डु के आदेशानुसार कुन्ती ने धर्म, वायु और इन्द्र का आह्वान कर युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन नामक पुत्र प्राप्त किये। माद्री ने भी सन्तान के लिए जब पाण्डु से प्रार्थना की तो पाण्डु ने अपनी प्रसन्नता के लिए माद्री को भी सन्तान देने का कुन्ती से अनुरोध किया। कुन्ती ने माद्री को किसी एक देवता का ध्यान करने को कहा। माद्री ने अश्विनीकुमारों का ध्यान किया। कुन्ती के मन्त्र के प्रभाव से वे उपस्थित हुए और उनके अंश से माद्री के नकुल और सहदेव उत्पन्न हुए।

प्रारब्ध को कौन टाल सकता है। शाप के प्रभाव से पाण्डु वन में अत्यन्त रूपवती पत्नी माद्री को एकाकी पाकर संयम से बाहर हो गये। माद्री ने पति को बहुत समझाया पर पाण्डु पर कोई असर नहीं हुआ। माद्री से सहवास करते समय उसका शरीर निष्प्राण हो गया।

 
साथ सती होऊंगी।कुन्ती की यह बात सुन माद्री ने निवेदन किया-बहिन! मैं जानती हूं सती होने का अधिकार तुम्हें ही है पर मैं छोटी बहिन होने के नाते अनुरोध करती हूँ कि यह अधिकार मुझे दो। मैं युवती हूं, अनभुवहीन हूँ, मेरी ही आसक्ति के परिणाम स्वरूप पति को शरीर त्यागना पड़ा है इसलिए मुझे यह अवसर दो कि मैं अपने इस अधम शरीर का परित्याग कर आत्मक्लेश से छुटकारा पाऊं। अपने बच्चों की भांति ही तुम मेरे बच्चों को पालन भी करना।


कुन्ती माद्री के आग्रह को अस्वीकार नहीं कर सकी। काष्ठचयन के बाद माद्री ने चिता तैयार कर पति के साथ अपनी देह का परित्याग किया। अपने छोटे पुत्रों का स्नेह त्याग कर पति परायणा माद्री ने पति के साथ जलकर अपनी इहलीला समाप्त की।

Ø स्त्रीणामशिक्षितपटुत्वममानुषीषु

संदृश्यते किमुत याः प्रतिबोधवत्यः।
प्रगन्तरिक्षगमनात्स्वमपत्यजात

मन्यैद्विजैः परभृताः खलु पोषयन्ति।

स्त्रियों में जो मनुष्य-जाति से भिन्न स्त्रियां हैं, उनमें भी बिना शिक्षा के ही चतुरता देखी जाती है जो ज्ञान् सम्पन्न हैं, उनका तो कहना ही कुया कोयल आकाश में उड़ने की सामथ्र्य होने तक अपने बच्चों का अन्य पक्षियों से पालन करवाती है।

-कालिदास (अभिज्ञानशाकुन्तल, ५/२२)

माद्री ने कुन्ती को पुकारा। कुन्ती ने आकर देखा तो स्तब्ध रह गयी। फिर संभल कर माद्री को कहा-"तुम बच्चों को सम्भालो, मैं बड़ी पत्नी हूँ अतः पति वके।

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