राजा
उग्रसेन के भाई देवक की सबसे छोटी कन्या का नाम देवकी था। देवकी का विवाह वसुदेव
से हुआ। उस समय इसका चचेरा भाई राजकुमार कस जो अपनी चचेरी बहिन पर बहुत स्नेह रखता
था, स्वयं रथ
हांक रहा था। विदा की उस वेला में मार्ग में जब आकाशवाणी हुई कि-“हे अभिमानी कंस! तू जिसे पहुँचाने जा रहा है उसके गर्भ से उत्पन्न आठवें
पुत्र के हाथों तेरी मौत होगी।”
कंस बड़ा क्रूर स्वभाव का था। उसने अपने पिता उग्रसेन, जो सात्विक प्रकृति के पुरुष थे, उन्हें कैद में बंदी बनाकर डाल दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। यह भविष्यवाणी सुन आवेश में तिलमिला उठा और देवकी के केश पकड़कर, तलवार खींचकर उसे मारने को उद्यत हुआ। वसुदेव ने समझाया-“यह आपकी छोटी बहिन है, पुत्री के समान है, इसका वध करके पाप के भागी क्यों बनते हो? तुम्हें इससे तो कोई भय नहीं है, इसके पुत्र से भय है और मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि इससे जो भी पुत्र होगा वह मैं आपको लाकर दूंगा।” वसुदेव के कहने से कस ने देवकी को छोड़ दिया। नारद द्वारा बहकाये जाने पर उसने अपने बहिन और बहनोई दोनों को कैद में डालकर बन्दी बना दिया और कड़ा पहरा बैठा दिया।
एक-एक कर देवकी के जो छः पुत्र कीर्तिमन्त, सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, सम्मद्रन और भद्र उत्पन्न हुए थे वे उसके चचेरे भाई कस द्वारा उसके सामने ही मार डाले गये। कस द्वारा, जो इस प्रकार का जघन्य और भयंकर कष्ट दिया गया।
उसे देवकी जैसी बहिन का हृदय कैसे सहन कर सकता था।
सातवां गर्भ स्रवित हो गया और आठवें पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म होता
है, जिसे कंस
से छिपाकर वसुदेव गोकुल में नन्द के घर यशोदा की गोदी में रख आये और वहां से एक
सद्यजात(उसी समय पैदा हुई) कन्या लेकर सकुशल लौट आये। कस देवकी के पुत्री होने का समाचार मिलते ही वहां आया। और
उस कन्या को भी पत्थर पर दे मारा। वह कन्या उसके
हाथ से छूटकर आकाश में यह कहती हुई चली गई , कि “हे अधम ! मुझे मारने का
पर्यन्त व्यर्थ है। तेरा काल इस धरती पर उत्पन्न हो गया है।” आठ सन्तानों की जननी देवकी का मातृहृदय वात्सल्य वेदना में तड़फता ही रहा।
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