चारूमती

on Monday 18 July 2016
चारूमती किशनगढ़ के राजा रूपसिंह की पुत्री थी। रूपसिंह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र मानसिंह उसका उत्तराधिकारी हुआ। चारूमती बहुत सुन्दर थी और उसका यह रूप सौन्दर्य तथा लावण्य ही उसके लिए परेशानी का एक कारण बन गया। चारूमती की सुन्दरता की प्रशंसा सुनकर औरंगजेब उससे शादी करने को इच्छुक हुआ। उसने अपने मनसबदार मानसिंह के सम्मुख, जो किशनगढ़ का राजा और चारूमती का भाई था, शादी का प्रस्ताव रखा। मानसिंह को विवश होकर उसका प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा।

 चारूमती जो अपने पिता की भांति परम वैष्णव थी, गीता आदि धार्मिक ग्रन्थों का नित्य पूजन-पठन करती थी, वह औरंगजेब जैसे क्रूर अत्याचारी, विधर्मी से विवाह नहीं करना चाहती थी। चारूमती ने अपनी माता और भाई मानसिंह को अपना मंतव्य स्पष्ट रूप से बता दिया था और यदि जबरन उससे शादी करने की कोशिश की तो वह प्राण त्याग देगी। इधर अपनी बहिन का दृढ़ निश्चय और उधर मुगल बादशाह औरंगजेब का खौफ राजा मानसिंह दुविधा में फंस गया। उसे कुछ उपाय नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाय।

 चारूमती दृढ़ निश्चय वाली, बड़ी वीर और साहसी राजपूत नारी थी। उसने संकट की स्थिति में भी धैर्य नहीं खोया और उसे अपने प्राण की रक्षा का एक उपाय सूझा। अपनी और अपने धर्म की रक्षार्थ उसने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखा जिसमें यह निवेदन किया गया कि-मेरे कुटुम्बी व परिवार जनों के होते हुए भी मैं आज एक अनाथिनी हूं। राज्य-सुख के अभिलाषी मेरे परिवार के लोग विधर्मी औरंगजेब से, मेरी इच्छा के विपरीत, जबरन विवाह करना चाहते हैं। मैने निश्चय किया है कि दिल्ली की अधीश्वरी बनने की बजाय मैं आपके चरणों की दासी बनना चाहती हूं, इसी में मेरा धर्म, कुल-परम्परा और स्वाभिमान सुरक्षित है।

आप शरणागत-वत्सल और समर्थ शासक है
, इसलिए यह अनुनय कर रही हूं कि मुगलों के हाथ पड़ने से मुझे बचाइये और एक स्वाभिमानी राजपूत बाला के स्वाभिमान की रक्षा कीजिए। चारूमती तो आपकी हो चुकी है, अब आप अपनी चारूमती की लाज बचाइये।चारूमती का पत्र पाते ही राजसिंह उसकी सहायता को उपस्थित होते है। मुगल बादशाह औरंगजेब की परवाह किये बिना महाराणा राजसिंह ने चारुमती के अनुमय को स्वीकार कर उससे विवाह करने रूपनगर पहुँचे। उसे अपनी सहधर्मिणी बनाया। इस प्रकार महाराणा राजसिंह की रानी चारूमती अपने स्वाभिमान की रक्षा करने में सफल हो जाती है।

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